रात को आकाश में प्रकाश की एक दूधिया नदी-सी दिखायी देती है, जिसे मिल्की वे (Milky Way) या आकाशगंगा कहते हैं। इटली के खगोलवेत्ता गैलीलियो ने सबसे पहले अपनी दूरबीन द्वारा इसको देखकर बताया था कि यह वास्तव में करोड़ों टिमटिमाते तारों का विशाल पुंज है। यह एक मन्दाकिनी (Galaxy) है। हमारा सौर-परिवार इसी का एक सदस्य है । न जाने इसमें और कितने सौरमण्डल हैं।
सभी मन्दाकिनियाँ तारों के विशाल पुंज हैं। ये पुंज इतने विशाल हैं कि कुछ लोग इन्हें ‘ब्रह्माण्ड के प्रायद्वीप’ कहते हैं । । समस्त ब्रह्माण्ड में मन्दाकिनियाँ फैली हुई हैं। शक्तिशाली दूरबीनों से 100 करोड़ मन्दाकिनी देखी जा सकती हैं, जिनकी दूरी 1000 प्रकाशवर्ष से एक करोड़ प्रकाशवर्ष तक है। अधिकांश मन्दाकिनियाँ आकाश में बिखरी हुई दिखायी देती हैं। मन्दाकिनियाँ करोड़ों तारों, धूल और गैसों के समूह हैं ।
ऐसा अनुमान है कि जब पहली बार ब्राह्मण्ड में विस्फोट हुआ तो,पदार्थों के फैलने से गैस के विशाल समूह या प्रोटो-गैलेक्सी अपनी ही गति विशेष से घूमने लगे। मन्द और तेज गति से घूमने के कारण विभिन्न आकारों और रूपों में मन्दाकिनियों का निर्माण हुआ। अब तक की ज्ञात मन्दाकिनियों के प्रमुख तीन रूप हैं-सर्पिल (Spiral), दीर्घवृत्तीय (Elliptical) और अनियमित (Irregular) । हमारी मन्दाकिनी सर्पिल मन्दाकिनी है। इसकी सर्पिल भुजाएँ
दूर-दूर तक फैली हैं और इन्हीं भुजाओं में से एक में हमारा सौरमण्डल स्थित है।
मन्दाकिनी व्यास में लगभग 100,000 प्रकाशवर्ष (30,600 Pc-Parsec) है। इसका केन्द्र तारकीय धूल कणों से ढका हुआ है। सूर्य से लगभग 32,000 प्रकाशवर्ष (9800 Pc-Parsec) दूर हमारी मन्दाकिनी का केन्द्र है। ऐसा अनुमान है कि यह 1200 करोड़ 1400 करोड़वर्ष पुरानी है और इसमें लगभग 1500 हजार करोड़ तारे हैं। मन्दाकिनी अपने अक्ष (axis) पर घूम रही है। किनारों की अपेक्षा यह अपने केन्द्र पर अधिक तेजी से घूमती है। मध्य क्षेत्र अपने अक्ष पर एक चक्कर लगभग 50,000 वर्षों में पूरा करता है।
सूर्य औरउसके पड़ोसी तारे एक गोलाकार कक्षा में 250 कि.मी. प्रति सेकेण्ड की औसत गति से मन्दाकिनी के केन्द्र के चारों ओर परिक्रमा करते
हैं। एक चक्कर पूरा करने में सूर्य को लगभग 22.5 करोड़ वर्ष लगते हैं। यह अवधि ब्रह्माण्ड वर्ष (Cosmic year) कहलाती है। आकाशगंगा के अतिरिक्त ब्रह्माण्ड में हजारों-लाखों मन्दाकिनियाँ हैं। इन मन्दाकिनियों का विस्तार हो रहा है। एक समय ऐसा भी आयेगा जब ये फैलने के बजाय सिकुड़ने लगेंगी।
यदि हम आकाशगंगा को गौर से देखें, तो हमें चमकीले भाग में काले धब्बे भी दिखायी देते हैं। ये वे क्षेत्र हैं, जिनमें तारे कम हैं।
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